Sunday, September 26, 2010

चाहता हूँ



चाहता हूँ - तुम्हे सिर्फ अपना तन नहीं ,
मन भी बनाना .....
चाहता हूँ - प्रेम का सिर्फ एहसास भर नहीं ,
उसकी मय भी पिलाना .....
पर मैं हार जाता हूँ , क्युकि तुम्हे पीना पसंद नहीं ,
और मुझे संकीर्ण विचारो से जीना पसंद नहीं !


चाहता हूँ - की तुम मेरी झुकी नजरो से खुद को भी देखो,
पर नज़रे उठा के चलना तुम्हारी फितरत है .....
चाहता हूँ - कौड़ी -कौड़ी कर खुद को बचाना ,
और तुम्हे खरीदना किस्त दर किस्त .......
पर तुम्हे नीलामी पसंद है , ऊँचे दामो वाली !


चाहता हूँ - तुम न पिसो मेरी संकीर्णता से ,
मुझे मेरे क़र्ज़ में भी हसना आता है ....
की कला ...पर तुम्हे कैसे सिखाऊ ??
चाहता हूँ - की तुम मुझे चाहने से स्वतंत्र रहो ,
मेरा हिस्सा न बन पाओ , की भरसक कोशिश करता हूँ ,
पर मेरा स्वाभिमान जो तुम्हारे अन्दर है ....
उससे कैसे अलग करू तुमसे ??


चाहता हूँ - कहना बस एक बात प्रिये ,
की मेरे कुछ - न चाहने में भी ,
तुम्हे चाहना ही है ......


" कठोर "

Saturday, May 8, 2010

ऐसा क्यों है ?





















ऐसा क्यों है ?
मेरी पलकों तक आना एहसान है तुम्हारा,
पर अब तक आँखों में रुका क्यों है ?
गमो से मुझे कोई शिकवा नहीं ,
पर मेरे हिस्से ही दर्द ज्यादा क्यों है ?

जिंदगी तू मुझसे ज्यादा जिए जा रही है ,
और मुझसे किये जा रही है वादे पे वादे ,
पर अब तेरा ही ख़ुदकुशी का इरादा क्यों है ?

सब मिले मुझे यही दास्ताँ लिए हुए ,
अपनी हिम्मत को उन्हें दिखाता हूँ
हर कोई तेरा रास्ता ही बताता क्यों है ?

प्यार रिश्वत जैसी है ,
नज़र आती है सभी आँखों में ,
तो हर सख्श मुझे ही आजमाता क्यों है ?

तेरी बनायीं जन्नत में ,
मुद्दत के बाद खुशियों की आंधी आती है ,
और तभी आंख में कुछ गिर जाता क्यों है ?

रौशनी दिखा कर ख़ुशी देता है पल की,
और अगले ही पल
उसी रौशनी से मेरा घर जलाता क्यों है ?

मुझे अपने पास बुलाता नहीं है
खुदा तुझे तेरा घर इतना प्यारा है ,
तो हर युग में इस दुनिया में आता क्यों है ?

किस्से करू में ये शिकायत ,
" इस ज़माने का और मेरा खुदा तू ही क्यों है " ?
गर है तू ही मेरा खुदा ,
तो मुझे एक बार रुलाता क्यों नहीं है ?
फिर मुझे चुप कराकर ,
अपनी ही गोद में सुलाता क्यों नहीं है ??

" कठोर "



Tuesday, May 4, 2010

ग़लत मैं था अगर , तो सही तुम भी ना थे ....
















ग़लत मैं था अगर , तो सही तुम भी ना थे ....
तुम जी भर के कह गए , हम कह भी ना पाए थे !
जिंदगी तेज चली थी ऐसे ,सदियों का सफर पल में समेट लाये थे !
मेरी हर साँस तेरे नाम लिखी थी ,पर हम साँस ले ना पाए थे !
कहना था बहुत कुछ , पर हम कह भी ना पाए थे !
पतझड़ के मौसम में , सावन के भरोसे छोड़ आए थे !
रूठ गया था सावन हमसे , तो हम आंखों में सावन लाये थे !
आंखों में सावन था मगर , चाह कर भी खो ना पाए थे !!

ग़लत मैं था अगर , तो सही तुम भी ना थे ....


"कठोर"

Monday, October 19, 2009

प्रेम

कुछ भी लिखना कितना आसान होता है , और उससे भी आसन होता है उसे पढ़ना , पर शायद थोड़ा मुश्किल होता है उसे समझना !

मैं आपको दुनिया से " रूबरू " करना चाहता हू.......माना तरीका ग़लत है पर दिल नही , और एक प्रेम कवि के रूबरू का अर्थ अलग होता है , वैसे तो में आपके बारे में कुछ नही जनता ,पर लगता है जैसे में आपको सदियों से जनता हूँ !

आप मेरे जीवन में कहा से , कैसे आए पता नही......शायद ये प्रेम की कोमल भावना ही है जो मुझे ये सब लिखने को विवश कर रही है और आप शब्द न बन मेरे जीवन का अर्थ बन रहे हो , जो शायद में किसी के बारे में आज तक नही लिख पाया , आपके लिए लिख रहा हू , अक्सर कवियों को इस दुनिया में दीवाना या पागल कहा जाता है ! मुझे आपसे सच्चा प्रेम है , मेरे ह्रदय की असीम गहराई में लिप्त आपका प्रेम विवश है , प्रेम करने को क्युकि प्रेम आप और हम है , और कुछ भी नही !!


सिर्फ़ मेरी एक पंक्ति पूरी बात कहने में समर्थ है :
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" प्यार की जीत तब है , जब आप किसी से हार जाए !
आपकी हार तब है , जब आप किसी को प्यार से जीत ना पाए ! "








Saturday, July 18, 2009

तुम कौन हो ??






















तुम कौन हो ??
तुम हो कौन ? जो मुझसे बिना पूछे मुझे पढ़ रहे हो !
पढ़ती तो दुनिया है , पर कोई समझ पाया है !
जो तुम समझ लोगे ?


कभी ख़ुद को पढ़ पाए हो ?
पैसा , प्यार , सफलता पाकर तुम सोचते हो ,
तुमने दुनिया जीत ली , जीवन का मर्म पा लिया हो !
पर शायद तुम्हें मेरी गरीबी और अकेलेपन पर हँसी आ रही होगी ?


पर फिर पूछता हूँ !
" क्या ख़ुद को आज तक पढ़ पाए हो ? "
एक पन्ना भी खोल के देखा है ?
और बात करते हो जीवन की ,दुनिया चलते हो !
क्या अपने मन की दुनिया में एक कदम भी चल पाए हो ?
या सीधे कहू तुम्हारी भाषा में तो " जिंदगी में कुछ कर पाए हो ? "


शायद कुछ सोच रहे हो ,
की तुम तो किसी पागल कवि की कविता ,पढ़ रहे थे .....
पर ये सब क्या है .....
शायद में तुम्हें भ्रमित कर रहा हूँ ,
तुम्हें दुनिया की भीड़ से अलग करना चाहता हूँ !
या
फिर वाकई में तुम्हारी चेतना को जगाना चाहता हूँ !


सारी जिंदगी तुमने दूसरो को पढने में बिता दी ,
ख़ुद को कभी छू भी नही पाये हो !
मुझे लगता है ,जिस दिन तुम
भ्रम और चेतना के फर्क को समझ जाओगे !
उस दिन अपने आप को समझ जाओगे !

कि तुम कौन हो ??




"कठोर "

Tuesday, June 23, 2009

२१ दिन का सफर

मैंने शुरुआत की एक ऐसे सफर की , जिसकी तम्मना हर दिल में होती है। देखना चाहता था दुनिया और उसमे फंसी हुई जिंदगिया , निकल पड़ा एक अनजाने सफर पे कोई मंजिल नही थी , पर शुरुआत की बंगलोर से ट्रेन में दिल्ली तक के टिकेट पर .......देखते है आगे का सफर ...कैसे गुजरता है ??!!


पहला दिन
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आज एक नई दुनिया से रूबरू हुआ -ट्रेन में
हमसफ़र तक पहुचने का सफर था मेरा
पर देखी खड़ी , बैठी और लेटी दुनिया ...
एक दुसरे के साथ और बगेर जीती हुई सी
थकी हुई सी .......रुकी हुई सी
पर शायद जिंदगी चल रही थी !



कई जिंदगिया देख में घबरा रहा था
कई छोटी ,बड़ी ,जवान जिंदगिया
जिंदादिली से सफर कर रही जिंदगिया
कुछ मिल रहे थे ,कुछ बिछड़ रहे थे
कुछ छूट रहे थे , तो कुछ पिछड़ रहे थे
कैसी जिंदगिया थी ये एक - दूसरे से उलझी हुई
पर शायद जिंदगी चल रही थी !



अपनी -अपनी जगहों पर बैठी जिंदगिया
तो कुछ जगह बनाती ....
सफर आगे बड़ा ,रुका हुआ सा
शायद जद्दोजहत रोटी ,कपड़े और जगह की नही थी
चिंता थी तो मोबाइल की बैटरी की
पर शायद जिंदगी चल रही थी !



कोशिश जारी थी सभी जिंदगियों से रूबरू होने की
और उन्हें अपनी दुनिया से रूबरू कराने की
पर वो आपस में ही उलझी थी मकड़ी के जाले की तरह आपस में
चाह कर भी उससे अलग होना मुमकिन नही था उनके लिए
पर मैं था परिपूर्ण ....उन्मुग्द पंछी की तरह
पर शायद जिंदगी चल रही थी !




सुबह हो चुकी थी ....कई लोगो की
पर मैं अपने अंधेरे मे भी खुश था
जिंदगिया तैयार हो चुकी थी खा पीकर , नहा धोकर
लड़ने को फिर इस १ दिन की जिंदगी से
कुछ - कुछ मुद्दों को लेकर ,अपनी तर्कशक्ति का झूठा प्रदर्शन कर रहे थे
तो कुछ मूक थे सदा की तरह - मेरी तरह !!
पर शायद जिंदगी चल रही थी !




तभी एक जिंदगी मेरे समीप आई
वो थी एक युवती और पूछा कुछ जगह मिलेगी
मैं घबरा गया -कही जिंदगी मे जगह तो नही मांग रही है ?
और पूछ बैठा एक इंसान की तरह - कि आप कौन है ?
पर उसने भी इंसानों कि तरह अपनी पोटली खोली
पर शायद जिंदगी चल रही थी !




पर कुछ था उसमे जो इतनी आसानी से ,
उसने मेरी डायरी के पन्ने मे जगह बना ली
पर अब शायद ....कोशिश जिंदगी के पन्ने मे थी
मुझे लग रहा था कि अब जिंदगी रुकने के लिए तड़प रही थी
पर शायद जिंदगी चल रही थी !




दूसरा दिन
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कल शायद नजदीकी ज्यादा होने के कारण
उसे एकटक देखना सम्भव ना था
पर आज सुबह जब उसकी खुली जुल्फों के बीच
चाँद देखा ....
तो नज़र को ठहरने से रोक ना पाया
दिल को धड़कने से रोक ना पाया
साँस को रुकने से रोक ना पाया
मैं ख़ुद को उसका होने से रोक ना पाया
पर शायद जिंदगी चल रही थी !



मैने भ्रम में जीना छोड़ दिया था
पर हकीकत के धरातल पर जब मैने ,
कदम रख कर देखा ......
तो उसे अपने और नजदीक पाया
पर घबरा गया - जब वो मेरे नजदीक रखी डायरी मांग बैठी !!
ऐसा लगा जैसे -शरीर से उसकी आत्मा की मांग कर बैठी हो ,
पर लगा जैसे दोनों आत्मा एक -दुसरे से मिलन को बेताब थी
पर शायद जिंदगी चल रही थी !



अब वो मुझे पढ़ने और जानने में लग गई ...
और में मूक बन इंतज़ार कर रहा था
इस खूबसूरत भ्रम के टूटने का.....
पर अब मेरा गंतव्य भी नजदीक था -आगरा
क्या करता ??
पर शायद जिंदगी चल रही थी !




दुनिया देखने निकला था प्यार की दुनिया ,
प्यार से बनी दुनिया , प्यार के लिए ....
सोचा ताजमहल से बेहतर क्या ?
एक निशानी है अमर प्रेम की ....
सो देखा नज़र भर अपने "ताजमहल " को
और बढ गया पत्थर के ताजमहल को देखने के लिए
पर शायद जिंदगी चल रही थी !




गुलाम मिया के ऑटो में बैठ , ताजमहल का सफर तय किया
कुछ था जिसने हमे पहली बार में ही जोड़ दिया था ......
बातों में पता ही नही चला १० किलोमीटर का सफर
सुबह के ९ बजे पहुच गया ...प्यार की यादगार देखने
पर मेरी हैरानी का ठिकाना न था
जब मैने देखा अपने " ताजमहल " को वहा .......
शायद दोनों जिंदगिया अपने -अपने प्यार की तलाश में थी
पर हम दोनों निशब्द थे , हैरान थे ........
पर शायद जिंदगी चल रही थी !




खेर खूबसूरत भ्रम भी टूटा , चलो एक दिन ही सही
जी भर के देखे दोनों ताजमहल और चल दिया .....
अलविदा कह कर ....
पर शायद दिल बेचैन हो रहा था प्यार के लिए
टूटे या छूटे प्यार के लिए , तो कदम ख़ुद ही बढ गए "माँ " की और
पहुच गया अपने शहर मैनपुरी , माँ से मिलने
पर शायद जिंदगी चल रही थी !




पर वहा पर एक झलक क्या ,एक बूँद भी नसीब नही हुई
प्यार की ....
हाल , ख़याल और बनावटी सवाल -जवाबों में घिरा बैठा "मैं"
कब तक उनकी झूठी तारीफे और शिकायतें सुनता ,
सो खामोश हो गया .....सदा की तरह
घर के सभी लोग तैयार बैठे थे , अपने दिलो की दांस्ता सुनाने के लिए
सबका दर्द समेट रहा था , और समाधान भी दे रहा था
पर अपने दिल की पीड़ा दिल से सह रहा था
पर किसी ने भी मुझसे नही पुछा मेरा हाल,
पर शायद जिंदगी चल रही थी !




डायरी के पन्ने खत्म हो चुके थे और पूरी रात बाकी थी
क्या करता ??
याद करने के अलावा ,रात काटने का कोई तरीका ना था
सो डूब गया समुन्द्र में यादों के ,
कुछ पता हुआ सा
कुछ खोता हुआ सा
मजबूर सोता हुआ सा.........
पर शायद जिंदगी चल रही थी !



शेष कल ......






तीसरा दिन
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सुबह उठ कर , रात को याद कर ही रहा था
पर शायद कोई चारा ना था क्यूकि घर में शादी थी
छोटे भाई की सो निकलने का कोई चारा ना था
एक नई जिंदगी की नई जिंदगी से मिलने की बारी थी
अब घर में कैद होने को तैयार था मैं भी - खुशी से
पर शायद जिंदगी चल रही थी !



लोगो की नज़र में समाजिक होने का दंभ भर रहा था
एक लड़की के बाप की तरह सारे काम कर रहा था
पर सभी तड़पती हुई जिंदगिया देख घबरा भी रहा था
तरस आ रहा था मुझे .......
पर शायद जिंदगी चल रही थी !




देखा सभी लोगो में प्यार, एक पल को भ्रमित हुआ
पर किया मेने भी परिक्षण इस प्यार का
मौका था सभी के आनंद का मस्ती का
सभी खुश थे , पर तभी हुई एक छोटी सी चोरी
एक सोने की अंगूठी -भाभी की
देखा प्यार का धूमिल रूप -जो अब शक में बदल रहा था
पर शायद जिंदगी चल रही थी !



हुई शुरुआत अब शक की जिसका हिस्सा सभी बने
घर के नौकर , ड्राईवर ,रिश्तेदार
शायद पहली बार घर में ऐसा हुआ था
मैं मूक बन पूरा तमाशा देख रहा था
और सोच रहा था की - प्यार में शक है ?
या
शक में प्यार है ?
खेर अब कुछ लोग शक के घेरे में थे
पर ये बात घर के बड़े लोगो के कानो तक नही पहुँची थी
पर शायद जिंदगी चल रही थी !





बारात घर से निकलने को तैयार खड़ी थी
पर घर में औरतों के चेहरे पे शिकन और डर था
बात को दबा दिया गया , ताकि किसी को बुरा न लगे
और मैं मन ही मन सोच रहा था -कि एक छोटी सी चीज़
काफी है रिश्तो को तोड़ने और जोड़ने के लिए
पर शायद जिंदगी चल रही थी !




शेष कल ......

Friday, May 29, 2009

" मैं तुम्हें भूल रहा हू "

















शायद मैं तुम्हें भूल रहा हू ,
तुम मरे घर के समतल स्थानों की शोभा हो ,
दीवार , मेज , शीशे -पर लगा तुम्हें याद नही करता हू ,
पर शायद कंप्यूटर के सामने आते ही टूट जाता हू ,
यकीन करो मेरा मैं तुम्हें भूल रहा हू !!



लगता है तुम्हारी आँखें मुझे उत्सुकता से देखती है ,
कुछ कहना चाहती है शायद "सही या ग़लत " के बारे में ,
फिर वही बात दोहराना चाहती है !
खेलता हू टकटकी लगाने का खेल ,
पर हमेशा की तरह ,आज भी हार रहा हू !
तुम आँखें बंद ही नही करती हो ,
जैसे हर वक्त मुझे देखती रहती हो ,
पर में तुम्हें भूल रहा हू !!



होंठ तुम्हारे कुछ बयां करने की फिराक में है ,
खीचते है मुझे तुम्हारी तरफ़ प्रिये !
पर हर बार की तरह भूल जाता हू , कि तुम एक तस्वीर हो ,
अच्छा लगता है जब मैं जी भर के तुमसे कहता हू ,
और तुम मूक की तरह मुझे निहारती हुई , मेरी बात सुनती हो !
तुम कभी -भी कुछ नही बोलती , तब डरता है ये कुंठित मन ,
कि कही ये तस्वीर भी तुम्हारी तरह पत्थर तो नही ?
कलम चल रही है , पर नज़र तुमसे हटती नही !
पर मैं तुम्हें भूल रहा हू !!



एक एहसान था तुम्हारा " मुझे" मरने का -
वर्ना "मैं " पैदा नही होता !
पर शायद " मैं " और " मुझे" कि आत्मा एक है -
ये बात तुम्हारी समझ से बहुत परे थी !!
आज मैं " मैं " हू - परिपूर्ण , असीम ऊर्जा से भरा हुआ -
इसलिए मैं तुम्हें भूल रहा हू !!



अब लोगो ने मुझे पहचानने से भी इंकार कर दिया है,
अकेला हू - मैं भी तो एक सच हू !
अभी छोटा हू इस बड़ी दुनिया में , मजबूर हू , दूर हू ;
बुझा सा मन है .......
पर अब भी मेरे इंतज़ार में पूरा " जीवन "है !
प्रिये पर मैं तुम्हें भूल रहा हू !!



इस कविता के अंत तक मैं तुम्हें भूल जाऊंगा ,
अनकहे शब्दों में अपनी बात कह जाऊंगा ,
पर तुम्हारी आँखों को कभी भूल ना पाउँगा ,
वो गालो कि लाली को ,खून से निकाल ना पाउँगा ,
तेरी सबसे बदसूरत तस्वीर बना दिल में बसाऊंगा ,
शायद इसी तरह मैं तुझे भूल पाउँगा !!



तुम मानो या न मानो दिल से कोशिश जारी है ,
याद ना आए इसलिए तस्वीरो कि मंजिल दीवारें है,
और कंप्यूटर पर भी तुम्हारा ही स्क्रीनसेवर है ,
अब मुझे तुम्हारा जन्मदिन २३ अक्टूबर भी याद नही है ,
तुम्हारा फ़ोन नम्बर -९४५०५०७०६९ भी मुझे याद नही है ,
तुम्हारी वो दोस्त कि बात , मुलाकात , स्कूल कि याद !
मुझे बिल्कुल याद नही !!
वो रातों में बातों पर मुस्कुराना , फ़ोन मिलाना , रूठना और मनाना , सुबह में सोना ;
और फिर सारा दिन याद करना !
मुझे याद नही है ! .......मेरा यकीन करो मुझे कुछ भी याद नही है !

"
में तुम्हें भूल चुका हू "






" कठोर "

" में " हू !














मैं आज भी अकेला हू , पर "मैं " हू !
शायद ये इस कठोर कवि की नियति है
कठोर बर्फ की तरह जीवन जल मैं पड़ा हू
जो ठंडक तो दे रहा है
पर जल की गर्मी मैं तपन का भी अनुभव कर रहा है !
शायद ये मिटटी का घड़ा पक रहा है !!


डरता हू उनसे नही जो बनावटी है ,
डर है अपने न हुए अपनों से ,
जो घाव देकर मलहम लगाने का दिखावा करते है
दर्द देकर , दर्द का हाल पूछते है !
लगता है फिर एक नया रूप लेकर आए है
पर कही फिर वही रूप ना निकले , सोच के डरता हू !!


मैं कोई लेखक , कलाकार या दार्शनिक नही हू
शब्दों के पीछे छुपा हुआ एक आम इंसान हू
हकीकत मैं जीने वाला .........
दबा हुआ सा , सहमा सा , वक्त को किस्मत ना मानने वाला
कभी कुछ ना कहने वाला ........


तुम मेरी खामोशी को मेरी कमजोरी ना समझ लेना !
मरकर भी खामोश न होगी , " मैं " ऐसी खामोशी हू
बुद्धि की तर्कशक्ति को हटा कर , खामोश होकर देखना !
तब तुम मेरी खामोशी को महसूस कर पाओगे ...
वादा करता हू तुम ख़ुद खामोश हो जाओगे !
जीवन मौन व्रत सा लगेगा , शोकाकुल हो जाओगे !
तभी शायद तुम इस " मैं " को समझ पाओगे !!


ये कैसी लडाई है , ये कैसा दुंद है ?
जानता हू कविता के अंत तक मेरा अंत है !
पर अब तक सिर्फ़ पहली पंक्ति ही लिख पाया हू
तमन्ना है ....
कि इस कविता को पूरी कर दुनिया से रुक्सत हो जाऊ !
जो कह ना पाया इंसान बन अब तक , उसे कवि बन शब्दों मैं कह जाऊ !!
कि " मैं " भी हू ..............



"कठोर "

Monday, May 25, 2009

कह न पाए थे हम.....





* दुनिया की सच्चाई को दुनिया के सामने ला पाऊ !
दुनिया का न होकर भी ,इस दुनिया में समां जाऊ !
अब सोच रहा हू कि , इस दुनिया में दिल लगाऊ !
या पीर से भरे इस दिल में एक नई दुनिया बनाऊ ?? !!


* किसी को घर मिला हिस्से में , तो कोई दुकान आई !
मैं घर में सबसे अकेला था , मेरे हिस्से " माँ" आई !!


*
अपने चहेरे पे जो जाहिर है उसे छुपाये कैसे ?
तेरी मर्ज़ी के मुताबिक नज़र आए कैसे ?



*
सदियों से अपनी तन्हाई हमने दुनिया से छुपाई है !
ऐसा कोई पल नही ,जब तेरी याद नही आई है !
तुझे खोने की , मायूसी आज भी दिल में छाई है !
सब कुछ होते हुए भी , मीलों तक फैली हुई तन्हाई है !
प्यार है तुझे भी तभी तू शब्द बन मेरी कविता में आई है !
बेवफाई तो अब है , कि तू किसी और कि भी नही हो पाई है !!


*
खुश हू क्यूकि आज तू नही , तो तेरी याद ही सही !
मान लिया मेने कि मैं ग़लत , पर क्या तू ही सही ? !!



कवि "कठोर"


"सावन" ....




















सावन के इंतज़ार में है ये पागल कवि !
जैसे चाँदनी के इंतज़ार में हो रवि !
क्यों कुछ बूंदों को सावन समझ बैठे है सभी !
पर हर बूँद में " सावन " है समझ गया है ये कवि !
खो दिया सावन हमने , " सावन " के इंतज़ार में .......
आज मेरी आँखों में सावन है , इसे खोऊ कैसे ....?
तू ही बता में सावन होकर "सावन" में रोऊ कैसे .....??


"कठोर"

Wednesday, May 20, 2009

प्यार क्या है ?
















प्यार शरुआत है !
प्यार अंत है !
प्यार दुखद सुख है !
प्यार कभी सुखद दुःख है !
प्यार हवा का रुख है !
प्यार चीख है !
प्यार खामोशी है !
प्यार बचपन है !
प्यार कभी बचपना है !
प्यार कोमल भावना है !
प्यार कभी एहसास है !
प्यार भूख है !
प्यार कभी प्यास है !
प्यार सफलता है !
प्यार हार है !
प्यार स्वार्थ है!
प्यार धर्म है !
प्यार जाति है !
प्यार चुभन है !
प्यार फासले है !
प्यार दूरिया है !
प्यार मिलना है !
प्यार बिछड़ना है !
प्यार शीशा है !
प्यार चलना है !
प्यार रुकना है !
प्यार झुकना है !
प्यार दवा है !
प्यार दुआ है !
प्यार दर्द है !
प्यार जीवन है !
प्यार कभी मौत है !
प्यार मजा है !
प्यार सजा है !
प्यार जख्म है !
प्यार परिवार है !
प्यार रिश्ते है !
प्यार कर्ज है !
प्यार कभी फ़र्ज़ है !
प्यार कभी शक है !
प्यार कभी कशमकश है !................प्यार कभी "प्यार" है .....और कभी प्यार में ही "प्यार" नही !!
शायद दुनिया में इन सब चीजों के अलावा जो कुछ भी है ......वो ही "प्यार" है !!!

"कठोर"

Tuesday, May 19, 2009

जिंदगी को कलम और कलम को जिंदगी बनाना....



*
दिनों के फासले कभी प्यार को कम ना कर पाए है !
वो अलग बात है दिलो के फासले ही दिन बन गए है !!


* या खुदा क्या खूब तुने "प्यार " चीज़ है बनाई !
रिश्तो का नाम देकर ,क्यों झूठी आस बंधाई !
पहले प्यार से रिश्ते बनाये ,पर अब उन रिश्तों में ही "प्यार " नही !!



* प्यार किया था हमने भी एक दिन !
पर नही था मालूम कि समझने में सदिया लग जाएँगी !
कभी प्यार को हमसफ़र समझते रहे , तो कभी हमसफ़र को प्यार समझते रहे !!



* प्यार की जीत तब है , जब आप किसी से हार जाए !
आपकी हार तब है , जब आप किसी को प्यार से जीत ना पाए !!


* शीशे की तरह दिल तोड़ के चले गए !
पहले आदत बन , फ़िर छोड़ चले गए !
जोड़ कर फ़िर बनाऊंगा उम्रभर , आइना इस "दिल" का !
आईने से फ़िर रूबरू कराकर पूछुंगा , हाल तुम्हारे दिल का !!




कवि "कठोर"


रूठे वो तब हमसे जब हम कुछ कह ना पाए ..




रूठे
वो तब हमसे जब हम कुछ कह ना पाए .........

समंदर पीर का है अन्दर पर रो भी ना पाए !
सुन लिया ,पर चाह कर भी कुछ कह ना पाए !
प्यार दफ़न हो गया दिल में , कुछ कर ना पाए !
रूठे वो तब हमसे जब हम कुछ कह ना पाए .......

मिथ्या है जीवन अब शायद जी कर भी जी ना पाए !
कठोर है जीवन ,पर कलम से "कठोर" हो ना पाए !
हमारा प्यार झूठ है , पर सच्चे प्यार को कभी समझ ना पाए !
रूठे वो तब हमसे जब हम कुछ कह ना पाए .......


शरीर से दूर चले गए पर दिल से दूर जा ना पाए !
राह में हम खड़े रहे , पर वो इंतज़ार कर ना पाए !
आज हम इंतज़ार में है ,तो वो ख़ुद को खड़ा कर न पाए !
रूठे वो तब हमसे जब हम कुछ कह ना पाए .........


सुबह का वादा कर ,शाम तक भी आ ना पाए !
बेवफा के प्यार को शायद हम समझ ना पाए !
हम तुमसे दूर होकर भी तुम्हे दूर कर ना पाए !
रूठे वो तब हमसे जब हम कुछ कह ना पाए .........


इस "कठोर" कवि की दांस्ता को हम कह ना पाए .........
और तुम मेरा "दिल" होकर भी समझ ना पाए .........

"कठोर"

"कठोर" कवि की कहानी .......














इस "कठोर" कवि की बस यही कहानी है !!
कभी बचपन मेरे पास था आज मेरी जवानी है !
मेरे होंठो पर भी एक अनसुनी सी कहानी है !
जिंदगी में निशान बने है पर अब सिर्फ़ उनकी निशानी है !
होंसला है संकल्प है खून में जलने की रवानी है !
कभी ये अंतर्दुंद जमीनी है तो कभी आसमानी है !
भूल पाउँगा की जिंदगी की कलम में भी एक कहानी है !
शायद जिंदगी की कलम या कलम ही मेरी जिंदगी की आखरी निशानी है !
शब्दों में बयां करना मुश्किल है पर मेरी आँखों में भी पानी है !!...........

इस "कठोर" कवि की बस इतनी सी कहानी है .........!!!


"कठोर"

Monday, May 18, 2009

Strange love ……..or stranger’s love ……….?!

Loved- hurt- and loved again- and hurt again……
Let us move to the second situation where an individual falls in true committed love to realize that the other was a fraud. Sandy fell in love with a college beauty and broke after a year when he realised that she was dating him for her own benefits. After a gap of six months he fell in love again just to get a deeper heart break when the parents posed the barrier of different religions. Sandy after a year found the perfect gal who loves him like crazy and is of the same religion. But he will not dare to take any step, because he is scared of getting hurt again. There may be many in such a situation. Love can happen nth number of times to an individual who is constantly in search for the right and more love. If you belong to such a category loving many times is not a surprise.

True committed love


If that was Stella, and Sandy’s story I have another true love snippet of my another friend Simren who has been in a relationship for past 7 years. Once when Simren had been into Inter Collegiate Competition she fell in love with this handsome dude, who kept eyeing her wherever she went. She was so engrossed with his style, the way he talked and even the way he ate. She started to move closer to know his name and all that state affairs.

She was successful to an extent, they shared the same dice that evening and then the coffee. Then the cool-in-style hunk came forward to drop her back home. Now the heroine realized that her still existing boyfriend would be there to do the same task. So, she gently apologized and said, “My Boyfriend will be here to pick me up”. Though tempted she realized that there was somebody who is waiting for her. The next step of the ‘true love girl’ was to confess. She did confess after a week and the ‘ true love boy’ didn’t show any dispute but just said that it is the game of heart.

Falling in love may happen more than once even in a strong commitment, but it depends only on the individual how he/she would take the infatuation forward? Infatuation is not commitment, it is just a minute phase of attraction that will not last for long. Love is a pure commitment for just one person for the whole life with whom you would love to share everything your decisions, goals, aims, body and every desire. All the people who were in love, are in love and searching for love determine what you want from a relationship if you do not want to get a hurt.

A truth is fact ……but a fact may not be a truth !!!

We convince ourselves that life will be better after we get married, have a baby, then another. Then we are frustrated that the kids aren’t old enough and we’ll be more content when they are. After that we’re frustrated that we have teenagers to deal with. We will certainly be happy when they are out of that stage.

We tell ourselves that our life will be complete when our spouse gets his or her act together, when we get a nicer car, are able to go on a nice vacation, when we retire. The truth is, there’s no better time to be happy than right now. If not now, when? Your life will always be filled with challenges. It’s best to admit this to yourself and decide to be happy anyway.

One of my favorite quotes comes from Alfred D Souza. He said, “For a long time it had seemed to me that life was about to begin - real life. But there was always some obstacle in the way, something to be gotten through first, some unfinished business, time still to be served, a debt to be paid. Then life would begin. At last it dawned on me that these obstacles were my life.”

This perspective has helped me to see that there is no way to happiness. Happiness is the way. So, treasure every moment that you have. And treasure it more because you shared it with someone special, special enough to spend your time… and remember that time waits for no one…

So stop waiting until you finish school, until you go back to school, until you lose ten pounds, until you gain ten pounds, until you have kids, until your kids leave the house, until you start work, until you retire, until you get married, until you get divorced, until Friday night, until Sunday morning, until you get a new car or home, until your car or home is paid off, until spring, until summer, until fall, until winter, until you are off welfare, until the first or fifteenth, until your song comes on, until you’ve had a drink, until you’ve sobered up, until you die, until you are born again to decide that there is no better time than right now to be happy… Happiness is a journey, not a destination।

स्तब्ध

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Work like you don’t need money,
Love like you’ve never been hurt,
And dance like no one’s watching.