मैंने शुरुआत की एक ऐसे सफर की , जिसकी तम्मना हर दिल में होती है। देखना चाहता था दुनिया और उसमे फंसी हुई जिंदगिया , निकल पड़ा एक अनजाने सफर पे कोई मंजिल नही थी , पर शुरुआत की बंगलोर से ट्रेन में दिल्ली तक के टिकेट पर .......देखते है आगे का सफर ...कैसे गुजरता है ??!!
पहला दिन--------------------------------
आज एक नई दुनिया से रूबरू हुआ -ट्रेन में
हमसफ़र तक पहुचने का सफर था मेरा
पर देखी खड़ी , बैठी और लेटी दुनिया ...
एक दुसरे के साथ और बगेर जीती हुई सी
थकी हुई
सी .......रुकी हुई सी
पर शायद जिंदगी चल रही थी !
कई जिंदगिया देख में घबरा रहा था
कई छोटी ,बड़ी ,जवान जिंदगिया
जिंदादिली से सफर कर रही जिंदगिया
कुछ मिल रहे थे ,कुछ बिछड़ रहे थे
कुछ छूट रहे थे , तो कुछ पिछड़ रहे थे
कैसी जिंदगिया थी ये एक - दूसरे से उलझी हुई
पर शायद जिंदगी चल रही थी !
अपनी -अपनी जगहों पर बैठी जिंदगिया
तो कुछ जगह बनाती ....
सफर आगे बड़ा ,रुका हुआ सा
शायद जद्दोजहत रोटी ,कपड़े और जगह की नही थी
चिंता थी तो मोबाइल की बैटरी की
पर शायद जिंदगी चल रही थी !
कोशिश जारी थी सभी जिंदगियों से रूबरू होने की
और उन्हें अपनी दुनिया से रूबरू कराने की
पर वो आपस में ही उलझी थी मकड़ी के जाले की तरह आपस में
चाह कर भी उससे अलग होना मुमकिन नही था उनके लिए
पर मैं था परिपूर्ण ....उन्मुग्द पंछी की तरह
पर शायद जिंदगी चल रही थी !
सुबह हो चुकी थी ....कई लोगो की
पर मैं अपने अंधेरे मे भी खुश था
जिंदगिया तैयार हो चुकी थी खा पीकर , नहा धोकर
लड़ने को फिर इस १ दिन की जिंदगी से
कुछ - कुछ मुद्दों को लेकर ,अपनी तर्कशक्ति का झूठा प्रदर्शन कर रहे थे
तो कुछ मूक थे सदा की तरह - मेरी तरह !!
पर शायद जिंदगी चल रही थी !
तभी एक जिंदगी मेरे समीप आई
वो थी एक युवती और पूछा कुछ जगह मिलेगी
मैं घबरा गया -कही जिंदगी मे जगह तो नही मांग रही है ?
और पूछ बैठा एक इंसान की तरह - कि आप कौन है ?
पर उसने भी इंसानों कि तरह अपनी पोटली खोली
पर शायद जिंदगी चल रही थी !
पर कुछ था उसमे जो इतनी आसानी से ,
उसने मेरी डायरी के पन्ने मे जगह बना ली
पर अब शायद ....कोशिश जिंदगी के पन्ने मे थी
मुझे लग रहा था कि अब जिंदगी रुकने के लिए तड़प रही थी
पर शायद जिंदगी चल रही थी !
दूसरा दिन------------------------------------------
कल शायद नजदीकी ज्यादा होने के कारण
उसे एकटक देखना सम्भव ना था
पर आज सुबह जब उसकी खुली जुल्फों के बीच
चाँद देखा ....
तो नज़र को ठहरने से रोक ना पाया
दिल को धड़कने से रोक ना पाया
साँस को रुकने से रोक ना पाया
मैं ख़ुद को उसका होने से रोक ना पाया
पर शायद जिंदगी चल रही थी !
मैने भ्रम में जीना छोड़ दिया था
पर हकीकत के धरातल पर जब मैने ,
कदम रख कर देखा ......
तो उसे अपने और नजदीक पाया
पर घबरा गया - जब वो मेरे नजदीक रखी डायरी मांग बैठी !!
ऐसा लगा जैसे -शरीर से उसकी आत्मा की मांग कर बैठी हो ,
पर लगा जैसे दोनों आत्मा एक -दुसरे से मिलन को बेताब थी
पर शायद जिंदगी चल रही थी !
अब वो मुझे पढ़ने और जानने में लग गई ...
और में मूक बन इंतज़ार कर रहा था
इस खूबसूरत भ्रम के टूटने का.....
पर अब मेरा गंतव्य भी नजदीक था -आगरा
क्या करता ??
पर शायद जिंदगी चल रही थी !
दुनिया देखने निकला था प्यार की दुनिया ,
प्यार से बनी दुनिया , प्यार के लिए ....
सोचा ताजमहल से बेहतर क्या ?
एक निशानी है अमर प्रेम की ....
सो देखा नज़र भर अपने "ताजमहल " को
और बढ गया पत्थर के ताजमहल को देखने के लिए
पर शायद जिंदगी चल रही थी !
गुलाम मिया के ऑटो में बैठ , ताजमहल का सफर तय किया
कुछ था जिसने हमे पहली बार में ही जोड़ दिया था ......
बातों में पता ही नही चला १० किलोमीटर का सफर
सुबह के ९ बजे पहुच गया ...प्यार की यादगार देखने
पर मेरी हैरानी का ठिकाना न था
जब मैने देखा अपने " ताजमहल " को वहा .......
शायद दोनों जिंदगिया अपने -अपने प्यार की तलाश में थी
पर हम दोनों निशब्द थे , हैरान थे ........
पर शायद जिंदगी चल रही थी !
खेर खूबसूरत भ्रम भी टूटा , चलो एक दिन ही सही
जी भर के देखे दोनों ताजमहल और चल दिया .....
अलविदा कह कर ....
पर शायद दिल बेचैन हो रहा था प्यार के लिए
टूटे या छूटे प्यार के लिए , तो कदम ख़ुद ही बढ गए "माँ " की और
पहुच गया अपने शहर मैनपुरी , माँ से मिलने
पर शायद जिंदगी चल रही थी !
पर वहा पर एक झलक क्या ,एक बूँद भी नसीब नही हुई
प्यार की ....
हाल , ख़याल और बनावटी सवाल -जवाबों में घिरा बैठा "मैं"
कब तक उनकी झूठी तारीफे और शिकायतें सुनता ,
सो खामोश हो गया .....सदा की तरह
घर के सभी लोग तैयार बैठे थे , अपने दिलो की दांस्ता सुनाने के लिए
सबका दर्द समेट रहा था , और समाधान भी दे रहा था
पर अपने दिल की पीड़ा दिल से सह रहा था
पर किसी ने भी मुझसे नही पुछा मेरा हाल,
पर शायद जिंदगी चल रही थी !
डायरी के पन्ने खत्म हो चुके थे और पूरी रात बाकी थी
क्या करता ??
याद करने के अलावा ,रात काटने का कोई तरीका ना था
सो डूब गया समुन्द्र में यादों के ,
कुछ पता हुआ सा
कुछ खोता हुआ सा
मजबूर सोता हुआ सा.........
पर शायद जिंदगी चल रही थी !
शेष कल ......
तीसरा दिन
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सुबह उठ कर , रात को याद कर ही रहा था
पर शायद कोई चारा ना था क्यूकि घर में शादी थी
छोटे भाई की सो निकलने का कोई चारा ना था
एक नई जिंदगी की नई जिंदगी से मिलने की बारी थी
अब घर में कैद होने को तैयार था मैं भी - खुशी से
पर शायद जिंदगी चल रही थी !
लोगो की नज़र में समाजिक होने का दंभ भर रहा था
एक लड़की के बाप की तरह सारे काम कर रहा था
पर सभी तड़पती हुई जिंदगिया देख घबरा भी रहा था
तरस आ रहा था मुझे .......
पर शायद जिंदगी चल रही थी !
देखा सभी लोगो में प्यार, एक पल को भ्रमित हुआ
पर किया मेने भी परिक्षण इस प्यार का
मौका था सभी के आनंद का मस्ती का
सभी खुश थे , पर तभी हुई एक छोटी सी चोरी
एक सोने की अंगूठी -भाभी की
देखा प्यार का धूमिल रूप -जो अब शक में बदल रहा था
पर शायद जिंदगी चल रही थी !
हुई शुरुआत अब शक की जिसका हिस्सा सभी बने
घर के नौकर , ड्राईवर ,रिश्तेदार
शायद पहली बार घर में ऐसा हुआ था
मैं मूक बन पूरा तमाशा देख रहा था
और सोच रहा था की - प्यार में शक है ?
या
शक में प्यार है ?
खेर अब कुछ लोग शक के घेरे में थे
पर ये बात घर के बड़े लोगो के कानो तक नही पहुँची थी
पर शायद जिंदगी चल रही थी !
बारात घर से निकलने को तैयार खड़ी थी
पर घर में औरतों के चेहरे पे शिकन और डर था
बात को दबा दिया गया , ताकि किसी को बुरा न लगे
और मैं मन ही मन सोच रहा था -कि एक छोटी सी चीज़
काफी है रिश्तो को तोड़ने और जोड़ने के लिए
पर शायद जिंदगी चल रही थी !
शेष कल ......